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प्रशांत किशोर का सियासी सफर , लालू-नीतीश पर कितना असर?
प्रशांत किशोर का सियासी सफर , लालू-नीतीश पर कितना असर?
आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी देने की रणनीति,अपने दम चुनाव लड़ने की तैयारी
by
Arun Pandey,
July 10, 2024
in
विशेष
Arun Kumar Pandey
अति पिछडों को आबादी के हिसाब सै और 40 महिलाओं को टिकट , मुस्लिमों को लेकर खास प्लान
बिहार में 1990 से लालू-नीतीश के इर्द-गिर्द हो
रही सियासी राजनीति के बीच प्रशांत किशोर की इंट्री की तैयारी हैं। पूरे बिहार की पांच हजार से अधिक की जनसुराज पदयात्रा और जनसंवाद कर उन्होंने अब अपनी पार्टी का 2 अक्टूबर को ऐलान करने की ठानी है। बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों पर पूरे दमखम अपने उम्मीदवार भी उतारेंगे। इसका लालू-नीतीश की सियासी सफर पर कितना असर होगा,यह लाख टके का सवाल बना है।
महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलने,गांवों की तस्वीर बदलने,शिक्षा,स्वास्थय,रोजगार का अवसर सुलभ कराने के भरोसे के साथ जातीय गोलबंदी के आधार पर चल रही राजनीति के बीच पीके ने सबको पीछे छोड़ने का संकल्प लिया है।
चुनावी रणनीतिकार की खास पहचान के धनी प्रशांत किशोर ने दूसरे दलों से जुड़े अपने लोगों से दोहरी सदस्यता से बचने और तत्काल नाता तोड़ने का निर्देश दिया है। रोचक है कि जनसुराज पार्टी के बनने के पहले राजद में घबराहट सामने आया है।पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने जनसुराज को भाजपा की बी टीम बता अपने कार्यकर्ताओं को इससे जुडने की मनाही की है। मानो 2025 के चुनाव में तेजस्वी के सीएम बनने की चाहत और राह में पीके मुसीबत बनते दिख रहे हैं।
पीके कह चुके हैं कि वे बिहार विधानसभा की सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे। 1990 से चल ई लालू-नीतीश की राजनीति से मुक्ति की राह बनायेंगे। उन्होंने संगठन का विस्तार काफी सोच-समझकर किया है। कट्टर जातिवादी राजनीति,बदनाम छवि और पुराने राजनीतिक चेहरा को गले लगाने की बजाय युवा और संगठन के प्रति निष्ठावान चेहरा पर भरोसा करेंगे। उन्होंने एक्स अकाउंट पर बिहार के सभी जिलों में प्रखंड स्तर तक कार्यकर्ताओं को पद आवंटित कर दिया गया है।
उनका कहना है कि आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर वे 21 नेताओं की एक कमेटी का गठन करेंगे जो पार्टी से जुड़े सभी मामलों को देखेगी।
दो साल पहले प्रशांत किशोर ने गांधी जयंती के मौके पर ही पीके ने चंपारण से जन सुराज यात्रा की शुरुआत की थी।
वे हमेशा बेरोजगारी , पलायन और नौकरी के मुद्दे पर लोगों को समझाते रहे हैं। लोगों को उनके वोटों की अहमियत भी बताते हैं। वे लोगों से अपने बच्चों का भविष्य संवारने की अपील करते हैं। वे जाति और धर्म के अलावा बाकी सामाजिक कुचक्र से आगे बढ़कर खुद के भविष्य के लिए नेता चुनने की अपील करते रहे हैं।
वे बिहार विधानसभा के आगामी चुनाव में महागठबंधन और एनडीए के खिलाफ खुद के बल बुते मैदान में उतरेंगे। 70-75 अति पिछडं और 40 महिलाओं सीटों को टिकट देंगे। अपनी सभाओं में यह भी कहा है कि बिहार के मुस्लिम हमेशा डर कर वोट करते रहे हैं। इसके अलावा उनका कोई अपना नेता नहीं है। वे दलितों पर भी बड़ा दाव लगाने जा रहे हैं। उनके मुताबिक बिहार में दलितों की 22 फीसदी आबादी है। इसलिए सुरक्षित सीटों पर सशक्त उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
60 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए हर महीने 2 हजार रुपए पेंशन की व्यवस्था की जाएगी, जन सुराज को एक बार सत्ता में दो साल में जनता का राज बनेगा। हमारा पहला संकल्प है, नाली-गली बने चाहे ना बने, स्कूल अस्पताल जब सुधरेगा तब सुधरेगा, लेकिन साल भर के अंदर आपके घर से जितने लोग बाहर कमाने गए हैं या आपके गांव में जितने युवा बेरोजगार बैठे हैं उनको नौकरी मिले चाहे ना मिले, कम से कम 10 से 15 हजार रुपए का रोजी-रोजगार बिहार में करके दिया जाएगा।
प्रशांत किशोर ने कहा कि लोगों ने बताया कि बिहार में सबसे ज्यादा परेशान बुजुर्ग लोग हैं, जो मजदूरी भी नहीं कर सकते हैं। 60 साल से अधिक उम्र की महिला और पुरुषों के लिए हर महीने 2 हजार रुपए पेंशन की व्यवस्था की जाएगी। आने दीजिए: प्रशांत किशोर*
प्रशांत किशोर ने कहा कि इस बार हम संकल्प लेकर आए हैं। हमने किसी नेता और दल का नहीं आपका हाथ पकड़ा है, आपके बच्चों का हाथ पकड़ा है। दो साल में जैसे आप दही को मथकर मक्खन निकालते हैं, वैसे ही समाज को मथकर, बिहार को मथकर ऐसे लोगों को निकालेंगे, जिसको आपके आशीर्वाद और वोट से जिताकर लाएं और जनता का राज बनाएं। दो साल में जनता का राज बनेगा। हमारा पहला संकल्प है, नाली-गली बने चाहे ना बने, स्कूल अस्पताल जब सुधरेगा तब सुधरेगा, लेकिन साल भर के अंदर आपके घर से जितने लोग बाहर कमाने गए हैं या आपके गांव में जितने युवा बेरोजगार बैठे हैं उनको नौकरी मिले चाहे ना मिले, कम से कम 10 से 15 हजार रुपए का रोजी-रोजगार बिहार में करके दिया जाएगा।
हा हमें अपने बच्चों के लिए पढ़ाई चाहिए।
बिहार में पीके की सियासी यात्रा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ शुरू हुई थी। 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू से दोस्ती और पीकी की रणनीति के बूते नीतीश कुमार न सिर्फ सत्ता में बने रहने में कामयाब हुए थे बल्कि भाजपा को बगैर नीतीश सत्ता पाने का सपना चकनाचूर कर दिया था। नीतीश कुमार ने अपनी सफलता का पूरा श्रेय पीके को देने के साथ कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर सलाहकार बना दिया था। पार्टी में नंबर-2 की जगह दे उपाध्यक्ष भी बनाया था। बाद में किसी बयान और अनबन की वजह से पीके जेडीयू से अलग हो गए। अब तो नीतीश कुमार के कट्टर विरोधी बन सीएम की कुर्सी छिनने के लिए एनडीए के खिलाफ कड़ा से कडा बयान दिया करते है। उनका दावा है कि आगामी चुनाव में जनता नीतीश और लालू प्रसाद के 32 साल के शासन को उखाड़ देगी। यह भी कहा है कि जैसे ही बिहार और दिल्ली के नेताओं को जन सुराज की हकीकत के बारे में पता चलेगा , उनके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी। कुल मिलाकर जेडीयू , बीजेपी और आरजेडी के वोटों में सेंधमारी का खाका खींचने में जुटे हुए हैं।
वे मानते हैं बिहार की जनता का मूड अगर समझा जाए तो सूबे की जनता नया विकल्प चाहती है। हालांकि, वो विकल्प कौन है अभी हाल-फिलहाल में ये नहीं बताया जा सकता है। बिहार में आप कहीं भी चले जाइए लोग नीतीश कुमार और लालू यादव के 32 सालों के शासन से इस हद तक झेल चुके हैं कि जनता का कहना है कि उन्हें नया विकल्प चाहिए। बिहार की जनता भाजपा और महागठबंधन दोनों दलों के अलाएंस से त्रस्त हैं।
बिहार में अगर सर्वे कराकर देखेंगे तो पचास प्रतिशत लोग एक नई विकल्प चाहते हैं। लेकिन वो विकल्प कौन होगा और कैसा होगा, इस पर व्यापक स्तर पर सकारात्मक बहस जरूर होनी चाहिए। बिहार की जनता यहां के तीनों दलों से विमुख हो चुकी है। क्योंकि पिछले दस वर्षों में यहां के लोगों की किसी भी स्तर पर तरक्की नहीं हुई है और बिहार सभी मानकों पर, चाहे शिक्षा, रोजगार और आर्थिक विकास में से किसी पर भी प्रगति नहीं कर पाया है और आज भी देश का सबसे गरीब राज्य है।
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