Loading
Sunday, August 03, 2025
Login / Register
देश
बिहार
झारखंड
राजनीति
अपराध
खेल
करियर
कारोबार
पंचांग-राशिफल
लाइफ स्टाइल
विदेश
ओपिनियन
विशेष
×
देश
बिहार
झारखंड
राजनीति
अपराध
खेल
करियर
कारोबार
पंचांग-राशिफल
लाइफ स्टाइल
विदेश
ओपिनियन
विशेष
Home
News
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में उतरा सावन, कवयित्रियों ने की पावस की रस-वर्षा, संध्या तक झूमते भीगते रहे श्रोता
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में उतरा सावन, कवयित्रियों ने की पावस की रस-वर्षा, संध्या तक झूमते भीगते रहे श्रोता
सावन समा गया आँखों में/ नींद नही आती रातों में ------ !
by
Arun Pandey,
August 03, 2025
in
बिहार
पटना, ०३ अगस्त । बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में रविवार को जैसे सावन ही उतर आया। बाहर ही नहीं, भीतर भी वर्षा हो रही थी। बाहर बदरियाँ बरस रही थी और भीतर कवयित्रियाँ। संध्या के उतरने तक कवयित्रियों की कजरी और श्रावणी-गीतों की मूसलाधार-वर्षा में सुधी श्रोता भीगते और आनन्द उठाते रहे। आज मंच पर भी महिलाओं का ही आधिपत्य था। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा की अध्यक्षता में सावन-महोत्सव कवयित्री-सम्मेलन आयोजित हुआ था।
विविध रंगों में सजी-धजी कवयित्रियों ने एक से बढ़कर एक प्रेम और ऋंगार के रस में डूबे पावस-गीत सुनाकर काव्य-रसिकों का हृदय जीत लिया। प्रेम और ऋंगार के गीतों पर जहाँ तालियाँ और वाह-वाह की गूँज हुई, वहीं विरह-गीतों पर श्रोताओं के मुख से हाय-हाय भी निकलते रहे।
कवयित्री-सम्मेलन का आरंभ डा मीना कुमारी परिहार की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवयित्री डा पूनम आनन्द ने विरह की इन पंक्तियों से श्रोताओं को मुग्ध कर दिया कि - "हरी हरी चूड़ियाँ, माथे पर बिंदियाँ/ उड़ गयी हे सखी आज मेरी आँखों की निंदियाँ / प्रियतम बिना सखी सूनी है डगरिया/ किसे सुनाऊँ सखी आज अपनी पैजानियाँ”। चर्चित कवयित्री अभिलाषा कुमारी ने विरह की पीड़ा को इन पंक्तियों में अभिव्यक्ति दी कि - "सावन समा गया आँखों में/ नींद नही आती रातों में/ फिर रखो हाथ हाथों में / नींद नहीं आती रातों में"।
कवयित्री राजकांता राज ने इन पंक्तियों से श्रोताओं का मन जीत लिया कि - "मेरे आँगन आया सावन / याद किसी की लाया सावन / विरहन की सूनी आँखों से/ दूर कहाँ जा पाया सावन / सीने में चिनगारी थी/ उसको भी भड़काया सावन / गा कर कजरी झूम उठा मन/ होंठों पे मुस्काया सावन !”
कवयित्री लता प्रासर ने सावन का आह्वान करती हुई कहा कि "रात, बरसात और पावस की बात कभी न ख़त्म हो! तुम आकर पास बैठ जाओ ! सावन तुम्हारे आने से क्या हो जाता है मन में/ बाबली सी हो जाती हूँ मैं। सावन तुम इतना बरसो कि तुम्हारे सागर में नयनों के जल डूब जाएँ!”
अपने अध्यक्षीय काव्य-पाठ में डा मधु वर्मा ने कहा "सघन मेघ प्यासी धरती पर/ आया बूँदों का नव रस लेकर/ पात-पात पर यौवन निखरा/ पुलकित वसुधा जल निर्झर/ आया सघन मेघ धरती पर "।
वरिष्ठ कवयित्री डा पुष्पा जमुआर, आरा से पधारी डा रेणु मिश्र, विभा रानी श्रीवास्तव, सुजाता मिश्र, सुनीता रंजन आदि कवयित्रियों ने भी अपनी सुमधुर काव्य-रचनाओं श्रोताओं को भाव-विभोर किया ।
मंच का संचालन करती हुई सम्मेलन की संगठनमंत्री डा शालिनी पाण्डेय ने माँ को स्मरण किया और कहा - "अम्मा मुझको याद दिलाना/ तुम मेरे बचपन का सावन/ धूँधली आँखों में बसता है अपने बचपन का सावन !”
सभागार में श्रोताओं के बीच सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ, वरिष्ठ कवि आचार्य विजय गुंजन, इंदु भूषण सहाय, कृष्ण रंजन सिंह, प्रवीर कुमार पंकज, डा प्रेम प्रकाश, अश्विनी कविराज, डा चंद्रशेखर आज़ाद, अमन वर्मा, सूरज कुमार सिन्हा, नंदन कुमार मीत, कुमारी मेनका, डौली कुमारी आदि साहित्य-सेवी और काव्य-प्रेमी उपस्थित थे।
you may also like
by david hall
descember 09, 2016
Maecenas accumsan tortor ut velit pharetra mollis.
by david hall
descember 09, 2016
Maecenas accumsan tortor ut velit pharetra mollis.
by david hall
descember 09, 2016
Maecenas accumsan tortor ut velit pharetra mollis.
by david hall
descember 09, 2016
Maecenas accumsan tortor ut velit pharetra mollis.
by david hall
descember 09, 2016
Maecenas accumsan tortor ut velit pharetra mollis.
Advertise